इंसाफ की डूबती नौका


इंसाफ की डूबती नौका

इन दिनों बेचिराग कर रोती रहती है दुनिया,
संविधान की मौजूदगी में देशको अंधेरे मैं झोंक दिया,
कई घायल किये तो कई अपनोकों भूल गए,
इंसाफ की डूबती नौका मैं निर्दयता का झूला झूल गए।

(जो खण्डित भारत चाहते है) उन्होंन्हें बिछा दिए काटें कई,
चुभे उन्हें जिन्हें सुरक्षा नसीब न हुई,
उन्होंन्हें दिखाया पत्थरों से बदला कैसे लिए,
की अंधेरे में अपने सगोंके उजालेंको हम भूल गए।

क्या पता क्यों उन विदेशियों से मुल्खको आझाद किया,
देशकी अंखडता के कारण जुल्मका घाव अपने सीने पे लिया,
देश की सुरक्षा के लिये अपना जीवन कुर्बान किया,
उन्हें भुल हम फिर विदेशियों के इरादों पे फिसल गए।

बता दो अब क्या इतिहास दोहराने से जीत गए,
उजाड़कर अपनो की दुनिया जीना सीख लिए,
बदले से ही मनःशांती होगी पूरी इन विचारों पे डट गए,
अपने अस्तित्व के अंहकार मैं देशके तुकडे कबूल कर लिए।

-शुभम जगताप©

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